कविता "तू "


तू

चला जा रहा इस मेले में तू
 क्या पायेगा इस रेले में तू
जो मन चाहता वो कर ले अभी
यूं प्यासा न रह हर जगह है नदी
इधर-उधर न भटक सुन मन की अभी
मेरे मालिक ने सबको ही रहमत है दी
बस कमी है इतनी के तू जाने नहीं
अभी खुद को एक तू पहचाने नहीं
जिस दिन अपनी धड़कन को सुन पायेगा
तू आगे सभी से निकल जायेगा

अर्चना



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