कविता "वो दिल की बात"




वो दिल की बात
नहीं समझ पाते
इशारों में हमने 
करी उनसे कई बातें
पर हर बार हम
ही पागल बन जाते
और वो चुप-चाप
सामने से निकल जाते
पहले तो उन्ही ने
हमें ख़त भेजा 
और हमसे हमारा
हाल-ऐ-दिल पूछा
अब  बताओ कैसे
हम सीधे इज़हार करें 
कहने मैं हमें भी
इश्क उनसे बहुत 
ही ज्यादा शर्म लगे
पर वो तो इतने
 नासमझ नहीं 
शायद वो हमको
तड़पाना चाहें
अब हम भी कुछ
दिन को उनसे 
नहीं मिलायेंगे 
अपनी नज़रें 
देखेंगे फिर वो
भी कैसे रहते हैं
इस दर्द -ऐ-इश्क को
दिल में रखके







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